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Print Rich Classroom एवं बच्चों का सीखना
पहले पैराग्राफ में सबसे पहले इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि आखिर इस विषय- Print Rich Classroom एवं बच्चों का सीखना को क्यों गंभीरता से लेना चाहिए। इसके बावजूद कि इस विषय पर बहुत पहले से काफी कुछ लिखा जाता रहा है। दरअसल 2020 में देश को एक लंबे समय के बाद नई शिक्षा नीति मिली है। इसके पहले देश की पहली शिक्षा नीति 1968 में बनी थी। उसके बाद 1986 में बनी जिसे 1992 में संशोधित किया गया। नई शिक्षा नीति 2020 में इस बात को पूरी ईमानदारी से स्वीकार किया गया कि देश में अभी भी लगभग 5 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिनके पास बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान नहीं है।
इसी चिंता को एड्रेस्स करने के लिए इस विषय को हमें गंभीरता से लेना होगा। क्योंकि ‘प्रिंट समृद्ध वातावरण एवं बच्चों का सीखना’ का संबंध ने एक नई शिक्षण शास्त्र को जन्म दिया है। जिसका सीधा संबंध बच्चों को प्रारम्भिक साक्षरता के कौशलों से है। यदि हमें सभी बच्चों को बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान देना हो तो हमें ‘प्रिंट समृद्ध वातावरण एवं बच्चों का सीखना’ के बारे में नए सिरे से सोचना होगा। क्योंकि बच्चे शाला आने के पूर्व अपने आसपास उपलब्ध प्रिंट रिच का उपयोग करना प्रारम्भ कर चुका होता है। यही कारण है कि बच्चे शाला आने के पूर्व ही बिस्कीट, टोफ़्फ़ी, चिप्स, कुरकुरे आदि वस्तुओं को पहचान लेता है और जब दुकानदार बच्चे की पसंद अनुरूप चीजें नहीं देता है तो अपनी प्रतिकृया देता है।
Print Rich Classroom क्या है?
शाब्दिक अर्थ लेने से तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि एक ऐसा वातावरण जहां भरपूर प्रिंट सामग्री देखने को मिलता है। ये है तो बिलकुल सही लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि आप किसी भी प्राथमिक / प्रांभिक शाला का अवलोकन कर लें- जो प्रिंट सामग्री शाला प्रारम्भ होने के शुरुवाती महीनों में कक्षा में दिखाई देती है वही पूरे साल भर देखने को मिलती है। जैसे कक्षा एक – दो में वर्ण माला, गिनती-पहाड़ा का चार्ट टंगा होना, कुछ महान पुरुषों के स्लोगन लिखा हुआ, प्रदेश-देश-विश्व का नक्शा लगा हुआ, आदि। ये सब एक समय के बाद बच्चों के लिए अर्थहीन हो जाते हैं और कुछ समय बाद ये केवल कक्षा के लिए सजावटी समान की तरह हो जाती है क्योंकि इसमें साल दर साल कोई परिवर्तन नहीं किया जाता। इसका परिणाम यह होता है कि इन सामग्रियों से बच्चों का अन्तरक्रिया एक समय के बाद समाप्त हो जाता है।
अब सवाल उठता है कि किस तरह की सामग्री से भरपूर कक्षा को अच्छा वातावरण कहेंगे?
इसके लिए हमें स्वयं से कुछ सवाल करने होंगे। जैसे-
- कक्षा में किस कक्षा स्तर या स्तरों के बच्चे बैठते है?
- उस कक्षा स्तर के अनुसार बच्चों को क्या सिखाना चाहते हैं या बच्चों से क्या-क्या सीखने की अपेक्षा की जाती है?
- किन-किन महीनों में बच्चों के साथ किन-किन अधिगम प्रतिफलों (Learning Outcomes) / पाठों / विषयवस्तुओं पर कार्य किया जाना है? आदि।
Print Rich Classroom के लिए किस प्रकार के प्रिंट सामग्री का चयन करें?
सबसे पहले कक्षा 1 एवं 2 स्तर की कक्षा के बारे में विचार करते हैं। सामान्यतः यह देखने को मिलता है कि इन कक्षाओं में वर्णमाला एवं पहाड़ा के चार्ट अवश्य देखने को मिल जाता है। जबकि वर्तमान समय में किसी भी पाठ्यपुस्तकों के शुरुवाती पाठों में इसका उल्लेख नहीं होता। सच्चाई यह है कि अब पाठ्यपुस्तकों में पाठों की शुरुवात कविता से होने लगा है। इसका आशय ही यह है कि पढ़ना सीखने की शुरुवात वर्णमाला या बारहखड़ी से करने की जरूरत ही नहीं है। बल्कि पढ़ना सिखाने की शुरुवात वाक्यों-शब्दों के माध्यम से करना वर्णमाला-बारहखड़ी से करने की अपेक्षा ज्यादा वैज्ञानिक तरीका है। इसके लिए अब सभी पाठ्यपुस्तकों में छोटी-छोटी कविताओं व कहानियों-चित्रों को स्थान दिया जाने लगा है।
उपरोक्त अनुच्छेद पर गौर करें तो हमें कक्षा एक व दो स्तर की कक्षाओं में छोटी-छोटी कविताओं, कहानियों, शब्दों एवं चित्रों से भरपूर (यथासंभव रंगीन) सामग्री से भरपूर प्रिंट समृद्ध वातावरण बनाने पर ज़ोर दिया जाना होगा जो समय
-समय पर बदलते भी रहता हो न कि एक ही सामग्री पूरे साल भर तक कक्षा की दीवारों पर लगा हो।
इन सामग्रियों का उपयोग बच्चों की रोज की दिनचर्या में पढ़ना-लिखना सिखाने में हो। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि प्रिंट समृद्ध का आशय केवल दीवालों में लगी हुई सामग्री से ही नहीं है बल्कि उन तमाम संसाधनों से है जिसका उपयोग बच्चों के सीखने-सिखाने के काम में लाई जा सके। ये कक्षा के एक कोने में उपलब्ध छोटी-छोटी चित्रात्मक कहानी भी हो सकती है।
अभी इस लेख में इतना ही … आगे के लेखों में इस बात पर विचार करेंगे कि पाठ्यचर्या के अनुरूप किस-किस सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes) के लिए किस-किस तरह के प्रिंट सामग्री का उपयोग ज्यादा बेहतर साबित होगा।
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