Aims of Education and Society in Hindi
(शिक्षा के उद्देश्य एवं समाज)
भारतीय संविधान की उद्देशिका में एक आदर्श समाज की परिकल्पना है जिसमें Aims of Education and Society के आपसी संबंध को आसानी से समझा जा सकता है। इसके लिए हमें शिक्षा के उद्देश्य एवं स्कूली प्रक्रिया के सम्बन्धों को देखना होगा।
पूर्व में प्रकाशित लेख ‘शिक्षा के उद्देश्य’ में इस बात का उल्लेख किया गया है कि विभिन्न महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों जैसे NCF-2005, NEP 2020, भारतीय संविधान के प्रस्तावना, आदि में शिक्षा के उद्देश्यों को किस तरह देखा गया है।
इस लेख में हम इस बात पर अपना ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करेंगे कि आखिर इन दस्तावेजों में उल्लेखित शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शाला में अध्ययनरत बच्चों में कौन-कौन से कौशलों एवं प्रक्रिया पर कार्य किया जाना होगा जिससे कि वे इन दस्तावेजों में उल्लेखित शिक्षा के उद्देश्यों वाले समाज के निर्माण की ओर हम अग्रसर हो सकें और हम कह सकें कि हमारी शिक्षा एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए कार्य कर रही है जिसे संवैधानिक मूल्यों वाली समाज कह सकेंगे।
इसे समझने के लिए हमें स्वयं से तीन सवाल करने होंगे-
सवाल नंबर 1 –
हमें कैसा समाज चाहिए?
सवाल नंबर 2 –
उस समाज के लिए हमें किस तरह के इंसान बनाने होंगे अर्थात उनमें क्या-क्या ज्ञान होंगे? क्या-क्या कौशल होंगे? उनका समाज को देखने का नज़रिया (Perspective) कैसा हो?
सवाल नंबर 3 –
उन ज्ञान, कौशलों एवं नज़रिया के विकास के लिए हमारी कक्षा एवं शाला की प्रक्रिया एवं शाला की संस्कृति (Culture)कैसी होगी?
उपरोक्त सवालों के माध्यम से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करेंगे कि कक्षा की प्रक्रिया का कक्षा / शाला में बच्चों में विकसित होने वाले कौशलों के माध्यम से हम किस तरह से उन उद्देश्यों वाले समाज के निर्माण में हमारी शिक्षा व्यवस्था अपना योगदान दे सकती हैं जिसका उल्लेख विभिन्न दस्तावेज़ों में किया गया है।
सवाल नंबर 1 – हमें कैसा समाज चाहिए?
इस सवाल का उत्तर तक पहुँचने के लिए हमें भारतीय संविधान की प्रस्तावना / उद्देशिका (Preambles) का स्मरण करना होगा जो निश्चित ही उन मूलभूत सिद्धांतों के आधार पर लिखा गया जिसे हम प्राकृतिक न्याय सिद्धान्त कह सकते हैं। उद्देशिका में लिखे हर शब्द हमें एक दिशा प्रदान करते हैं जिससे मूल्यों वाली समाज का निर्माण की ओर अग्रसर हो सकेंगे। संविधान के उद्देशिका के आधार पर हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि हमें एक ऐसा समाज चाहिए-
- जहां के लोग – प्रजातांत्रिक मूल्यों पर विश्वास करते हों अर्थात समाज के लिए सभी निर्णय आम सहमति से लिये गए हों। लिये गए निर्णय में सब की साझे दारी हो।
- जहां के लोगों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय मिलता हो। अर्थात सामाजिक रूप से लोगों के साथ धर्म, जाति, लिंग किसी भी आधार भेदभाव नहीं होता हो। देश के संसाधनों का उपयोग समाज के सभी वर्गों के हित में होता हो। राजनैतिक प्रक्रिया में सभी शामिल होते हों।
- जहां विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता हो।
- जहां सभी की प्रतिष्ठा और गरिमा का ख्याल रखा जाता हो एवं अवसर की समता हो।
- और, राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए सभी नागरिकों में भाई-चारा हो-बंधुत्व हो।
(निष्कर्ष : समाज ऐसा हो जो संवैधानिक मूल्यों पर संचालित होती हो अर्थात Aims of Education and Society के बीच गहरा संबंध)
सवाल नंबर 2 – इस तरह के समाज (संवैधानिक मूल्यों वाली) के लिए हमें किस तरह के इंसान बनाने होंगे अर्थात उनमें क्या-क्या कौशल होंगे?
ऐसे इंसान जो –
- विवेकशील हों।
- चिंतनशील हों।
- तर्कशील हों।
- स्वतंत्र सोच रखते हों।
- वैज्ञानिक सोच / दृष्टिकोण रखते हों।
- समाज व देश के हित में निर्णय लेने में सक्षम हों।
(निष्कर्ष : व्यक्ति में विवेक, चिंतन, तर्क, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, स्वतंत्र सोच व विवेक पूर्ण निर्णय लेने के कौशल हो अर्थात मूलभूत कौशलों के माध्यम से Aims of Education and Society के बीच को देखना होगा)
सवाल नंबर 3 – उन कौशलों के विकास के लिए हमारी कक्षा एवं शाला की प्रक्रिया तथा संस्कृति कैसी होगी?
प्राथमिक शिक्षा / प्रारम्भिक शिक्षा अर्थात कक्षा 1 से 8 तक की कक्षाओं में मुख्य रूप से सभी बच्चों को भाषा, गणित, पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान विषयों के शिक्षण पर फोकस होता है।
इन स्कूली विषयों के माध्यम से कक्षा की प्रक्रिया ऐसी हो जो बच्चों को –
- अपने जीवन से जीवंत तरीकों से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित करती हो।
- रचनात्मक चिंतन व अंतर्दृष्टि को प्रोत्साहित करती हो तथा मानवीय सामर्थ्य को प्रोत्साहित करती हो।
- प्रश्न करने का अवसर देती हो।
- खोज एवं अन्वेषण के अवसर देता हो जो उनमें वैज्ञानिक ढंग से सोचने के लिए प्रोत्साहित करती हो।
- तर्क करने व निष्कर्ष तक पहुँचने का अवसर देती हो।
- स्वयं की राय व निर्णय के लिए तैयार करती हो।
- एक दूसरे से सीखने का अवसर देती हो व प्रोत्साहित करती हो।
- कल्पना व चर्चा के लिए प्रोत्साहित करता हो।
- अवधारणात्मक स्पष्टता की ओर ले जाती हो।
- सीखने के अलग-अलग अनुभव व जीवन के साथ जोड़ती हो।
- भारत की सांस्कृतिक विविधता के अनुरूप हो अर्थात समावेशन के सिद्धान्त पर संचालित होती हो।
शाला की संस्कृति ऐसी हो जहां –
- बच्चों को तथा अध्यापकों को साथ में मिलकर सीखने के लिए प्रोत्साहित करती हो।
- शाला से जुड़ी प्रत्येक निर्णय सभी हितधारकों से विचार-विमर्श कर लिए जाते हों अर्थात प्रजातांत्रिक मूल्यों को महत्व दिया जाता हो।
- समता-समानता एवं समावेशन को महत्वपूर्ण स्थान मिलता हो। जिसमें विश्वास, सबके लिए सम्मान तथा न्याय को केंद्र में रखा जाता हो।
निष्कर्ष: Aims of Education and Society (शिक्षा का उद्देश्य एवं समाज) एक दूसरे के पूरक हैं। अर्थात जो शिक्षा समाज के उद्देश्यों को पूरा करने में योगदान देने में सक्षम न हो उसे शिक्षा कहना निरर्थक ही होगा। और ये सार्थक तभी संभव होगा जब शिक्षा से जुड़े सभी हितधारक विशेषकर शिक्षक, शिक्षा अधिकारी एवं अभिभाव्क तथा समुदाय शाला एवं कक्षा की प्रक्रिया और संवैधानिक मूल्यों वाली समाज के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम हो। इसी तरह सांस्कृतिक विविधता वाली समाज शिक्षा अर्थात स्कूलों को भी मार्गदर्शन करती हो और ये सब वैज्ञानिक तर्कों पर आधारित हो।
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