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Engaging Children Creatively
बच्चों को रचनात्मक रूप से संलग्न करना: एक कला या संस्कृति
Engaging Children Creatively नामक यह लेख बच्चों को भय रहित सीखने की प्रक्रिया में शामिल करने के तरीकों पर प्रकाश डालता है। अर्थात शिक्षकों के साथ बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करते हुए विद्यालयों में सीखने-सिखाने की परंपरागत तरीके अर्थात दंड एवं भय जैसी घटनाओं के समाधान के लिए सुझाव देता है , इसे हमें देखना-समझना है कि यह प्रक्रिया एक कला है या संस्कृति (An art or Culture)।

Engaging Children Creatively: An Art or Culture, क्या है इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए एक विद्यालय में बच्चों को चुप कराने के एक अलग तरीके का जिक्र इस लेख में किया गया है। एक शाला जहां कक्षा के जो बड़े बच्चे हैं उनके हाथों में छड़ी होती थी l वे छोटी कक्षा के बच्चों के शोर को चुप कराने के लिए – शिक्षक इन बच्चों से कहते कि , “जाओ उस कक्षा के बच्चों को चुप काराओ” शिक्षक के ऐसा कहते ही बड़ी कक्षा के बच्चे उस कक्षा में जाते और उन बच्चों की छड़ी से पिटाई करके आते l इसके तुरंत बाद उस कक्षा का बच्चा जिसे पिटाई पड़ी वह आता है और शिक्षक से कहता है कि इस भैया ने मुझे इसलिए मारा क्यूंकि मैंने घर के पास खेलते समय चलाने के लिए अपना साईकिल नही दिया l शिक्षक ने उस बड़े बच्चे से बात की कि ये ऐसा क्यों कह रहा है ? बच्चे ने कहा, “ये क्लास में भी बहुत शोर कर रहा था l

मैंने इसीलिये मारा पर ये आपसे कुछ और कह रहा है l” ऐसी स्थिति में शिक्षक कैसे तय करेंगे कि कौन सही कौन गलत ? क्यूंकि दोनों ही स्थितियों में शिक्षक कक्षा में उपस्थित नही थे, हर समय शिक्षक का उपस्थित होना संभव भी नही हैं l सही और गलत बहुत अधिक घटना केन्द्रित सापेक्ष मामला हैl
क्या पिटाई से समस्या का समाधान होता है?
इस तरह की नियमित शिकायतों पर शिक्षको से चर्चा की गयी l Engaging Children Creatively क्या पिटाई से समस्या का समाधान होता है ? क्योंकि सच्चाई यह है कि तुरंत में बच्चे थोड़ी देर के लिए चुप रहते हैं थोड़ी देर बाद फिर कक्षा में शोर-गुल की स्थिति बन जाती है। यहाँ एक प्रश्न खड़ा होता है कि ऐसी स्थिति में बच्चे बिना शोर गुल किए तथा कक्षा में भय या दंड के बिना सीखने में रचनात्मक तरीके से संलग्न रहें।
सुझाव
Engaging Children Creatively: An Art or Culture के इस लेख में लेखिका ने शिक्षकों को जो सुझाव दिया वह था- बच्चों को चुप कराने के लिए उन्हें चिंतन के प्रश्न दिए जाने चाहिए जिससे कि बच्चे एक चुनौती के साथ – साथ रचनात्मक ढंग से सीखने में संलग्न हों। इस सुझाव पर काफी चिंतन मनन के बाद इस बात पर सहमती बनी और यह निर्णय लिया गया कि वे बड़े बच्चों के हाथों में छड़ी देकर पिटाई का काम नहीं कराएँगे’ क्योंकि यह कार्य उन्हें और अधिक हिंसक बना रहे हैं l अभी भी बड़े बच्चों की मदद लेंगे पर काम कुछ दूसरा करवाएंगे ये काम क्या हो सकता है इस दिशा पर विचार किया गया l ऐसे कौन से कार्य हैं जो ये बड़े बच्चे छोटे बच्चों को सिखा सकते हैं जिसे वे अपने छोटे दोस्तों के साथ कर सकते हैं l
इस विद्यालय में शिक्षक पहले से बच्चों के सीखने को केंद्र में रखकर कक्षा शिक्षण का कार्य कर रहे थेl इनके साथ समय-समय रचनात्मक
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लेखन और पठन कहानी सुनने जैसे कार्य हो रहे थे l इसी कार्य पर पहले शिक्षकों से चर्चा की गयी कि क्या यह काम हम बड़े बच्चों के सहयोग से छोटे बच्चों के साथ करा सकते हैं। इसके लिए एक अलग स्तर पर कार्य करना होगा . बड़े बच्चों से यह पूछा गया “क्या ये जिस तरह से तुम लिख रहे हो यही कार्य अपनी कक्षा के छोटे विद्यार्थियों के साथ कर सकते हो ? आपको उनसे लिखवाना हो तो क्या-क्या करोगे ?” आदि इन सवालों पर चर्चा की गयी l जिसमें बच्चों ने कहा “हम चित्र बनायेंगे और शब्द लिखेंगे फिर हम उनसे पढने के लिए कहेंगे।“-
जैसे –
- कभी हम आएसक्रीम पर बात करेंगे l किस-किस को आईसक्रीम खाना पसंद है ? क्यों पसंद है ? आपने आईसक्रीम कब खाई थी ? बातचीत के बाद आईसक्रीम का एक चित्र बनायेंगे l चित्र के नीचे शब्द लिखेंगे ‘आइसक्रीम’ और उन्हे पढ़ने के लिए कहेंगे;
- कभी हम अन्त्याक्षरी खेलेंगे – और अपने अपने शब्द को लिखेंगे;
- किताब की चित्रों पर बात करेंगे;
- किसी दिन हम कविता सुनायेंगे –
अबकी बार ऐसा हुआ
इस प्रक्रिया ने विद्यालय में छड़ी से पिटाई पूरी तरह से समाप्त किया और विद्यालय में सिखाने का एक माहौल निर्मित होने लगा l शिक्षक जब कक्षा में होते तो किताब पढ़ाते और जब वे नही होते तब बड़े बच्चे छोटी कक्षाओं में शिक्षकों के द्वारा बतायी गयी गतिविधियां को कराते l इसमें किसी खेल को कक्षा में खेलना और उसके बारे में लिखना, किसी अभ्यास पत्रक को पूरा करना जैसे कार्य शामिल थे l इस कार्य को नियमित रूप से करने के कारण पहले बड़ी कक्षा में ऐसे विद्यार्थी जिन्हें पढ़ना आता था उन बच्चों की संख्या कम थी पर छोटे बच्चों के साथ काम करने की इस प्रक्रिया से बड़ी कक्षा के विद्यार्थी भी पढ़ना सीखने लगे इसमें कक्षा चार और पांच के 35 में से 23 बच्चे पढ़ना सीख गए थे ।
बच्चे जिस भी परिवेश में रहते हों उन पर उनके आस-पास की घटनाओं का सीधा प्रभाव पड़ता है। यह बात हम सब बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं. इन घटनाओं का वे क्या अर्थ निर्मित करते हैं ये निर्भर करता है उनके आस-पास के वयस्क, उनके दोस्त आपस में क्या और किस तरह बात करते हैं? वो व्यवहार जो उनके साथ होता है ज्यादातर बच्चे उसी व्यवहार को स्वयं करने लगते हैं। और विद्यालयों में अधिकाँश समय शिक्षकों का इस बात को सुलझाने में निकल जाता है की किसने किसको मारा ? क्यूँ मारा ? किसकी किताब किसने ले ली हैं l एक बच्चे ने दुसरे बच्चे की पेन्सिल ले ली l इन मुद्दों को सुलझाने का कोइ मानक तरीका नही है l एक सुलझे हुए व्यक्ति की तरह लगातार बच्चों से बात करते रहना जरूरी है। इन सब में बुनियादी मसला तो ये हैं कि हम शिक्षक भी इन समस्याओं के बारे में क्या जानते हैं ? इन मुद्दों की वजह कहाँ है ? क्या ये उस तत्काल हुए मसले में हैं की हमारे सामजिक पारिवारिक परिवेश में कहीं निहित है ?
निष्कर्ष
कक्षा में किसी भी घटना के होने के बाद शिक्षक के निर्णय पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है l शिक्षक भी कक्षा में हुए किसी विवाद पर बहुत जल्दी से जल्दी अपने निर्णय सुनाकर उस बात को समाप्त कर देना चाहते है l शिक्षक की अपनी तल्लीनता है उनके लिए भी कुछ तय जिम्मेदारियां हैं l कक्षा में भाषा, गणित और पर्यावरण का अध्यापन अधिक जरूरी है l हाँ ये है भी, इसके साथ-साथ हम बच्चे को एक अच्छा सोचने और समझने वाला इंसान भी बनाना चाहते हैं l आज का ये विद्यार्थी जो स्कूल में है कल का एक नागरिक है l इनके सामने विद्यालय और समाज से जिस तरह के व्यवहार बार-बार सामने आयेंगे और उनके साथ जिस तरह का न्याय होगा वे उसे ही अपना बुनियादी विश्वास बनायेंगे l अब आप ही ये तय करें कि Engaging Children Creatively: An Art or Culture?