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Inclusive Education
(समावेशी शिक्षा – with a Classroom Observation)
प्रत्येक बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए हमें Inclusive Education समावेशी शिक्षा को विस्तार से समझना होगा। जिसमें समावेशी शिक्षा क्या है? इसका उद्देश्य क्या है? तथा इसकी शिक्षण प्रक्रिया अर्थात इसका शिक्षण विज्ञान कैसी होगी, इन सभी पक्षों को इस पोस्ट में क्रम से समझेंगे। जबकि इसके अंतिम पैराग्राफ में एक कक्षा की प्रक्रिया (कक्षा अवलोकन) को जीवंत रूप से देखेंगे। अर्थात इसके शिक्षण विज्ञान को समझेंगे। जिसमें देखने का प्रयास करेंगे कि शिक्षक की कक्षा कितनी समावेशी कक्षा है? साथ ही और बेहतर करने के लिए कुछ सुझाव भी रखेंगे।
Inclusive Education समावेशी शिक्षा से क्या आशय है?
Inclusive Education समावेशी शिक्षा शाला के सभी छात्रों को उनकी क्षमताओं, पृष्ठभूमि तथा मतभेदों की परवाह किए बिना सीखने का समान अवसर प्रदान करना है अर्थात सभी बच्चों तक शिक्षा की पहुँच उपलब्ध कराना। इसमें एक ऐसा वातावरण तैयार करना होता है, जहां विविधता का सम्मान होता हो तथा सीखने में छात्रों की भागीदारी को बढ़ाते हुए सीखने को बढ़ावा देता हो। क्योंकि समावेशी शिक्षा इसी सिद्धान्त पर टिकी हुई है कि छात्रों के पास अलग-अलग सीखने की क्षमता एवं शैली होती है। सीखने की इसी अलग-अलग शैलियों के अंतर को एक शिक्षक या शाला समायोजित करने का प्रयास करता है।
समावेशी शिक्षा का क्या उद्देश्य है? (Aims of Inclusive Education)
इसके निम्नांकित उद्देश्यों की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है-
- शाला में सीखने का माहौल बनाना जिससे कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चे भी सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा ग्रहण कर सकें।
- सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देना।
- समाज में व्याप्त भेदभाव-बहिष्कार-पूर्वाग्रह को समाप्त करने के लिए बच्चों को सक्षम बनाना।
- संवैधानिक मूल्यों को विशेषकर इक्विटी के सिद्धान्त अमलीजामा पहनाना।
- बच्चों की पृष्ठभूमि या परिस्थितियों की चिंता किए बिना उन्हें सीखने एवं सफल होने के लिए तैयार करना।
नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 में उल्लेखित समावेशी शिक्षा के उद्देश्य

विभिन्न दस्तावेजों में समावेशी शिक्षा का उल्लेख
NCF 2005 में Inclusive Education समावेशी शिक्षा का उल्लेख
NCF 2005 में 4.3.2 पृष्ठ क्रमांक 96 (हिन्दी संस्कारण) में समावेशी शिक्षा के जिन महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर इंगित किया गया है, वे हैं-
- स्कूलों को ऐसे केंद्र बनाए जाने की जरूरत है जहां सभी बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित हो।
- सभी बच्चों खासकर शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ बच्चों, समाज के हाशिये पर जीने वाले बच्चों और कठिन परिस्थितियों में जीने वाले बच्चों को शिक्षा से फायदा मिले।
- शिक्षण योजना बनाते समय शिक्षक ऐसी गतिविधियों को कक्षा में शामिल करे जिससे सभी बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित हो।
NEP 2020 में समावेशी शिक्षा का उल्लेख
इसमें समतामूलक एवं समावेशी शिक्षा को एक दूसरे के पूरक के रूप में देखा गया है । जिसमें मुख्य रूप से शिक्षा में अल्प प्रतिनिधित्व वर्गों के उत्थान, लड़कियों की शिक्षा, आदिम जाति-जन जाति एवं पिछड़े वर्ग की शिक्षा, शहरी निर्धन परिवारों की शिक्षा, ट्रांसजेंडर बच्चों की शिक्षा और अंत में – जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों हैं उनको शिक्षा में शामिल करने को महत्वपूर्ण माना गया है।
Inclusive Education समावेशी शिक्षा का शिक्षण विज्ञान (कक्षा प्रक्रिया – एक अवलोकन)
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा तैयार दस्तावेज़ ‘निपुण भारत’ में समावेशी कक्षा के लिए जिस शिक्षण विज्ञान (Pedagogy) की ओर ध्यान दिलाया गया है उनमें प्रमुख है-

- बाल केन्द्रित एवं interactive class ।
- गतिविधि आधारित/अनुभवात्मक कक्षा।
- प्रामाणिक एवं उपयुक्त सामग्री वाली कक्षा पर ज़ोर।
- खेल एवं खिलौना आधारित कक्षा ।
- कहानी कहने – सुनने वाली कक्षा।
- आईसीटी-एकीकृत शिक्षा।
इसमें से प्रथम दो बिन्दुओं को नीचे दिए गए लेख / अवलोकित कक्षा में देखने का प्रयास किया गया है। जिसे आसान शब्दों में कह सकते हैं कि जिस कक्षा में शिक्षक द्वारा बच्चों को सिखाने की प्रक्रिया में कक्षा के सभी बच्चों को या ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शामिल कर पाता हो उस कक्षा को समावेशी कक्षा का दर्जा दिया जा सकता है। ऐसे ही एक कक्षा का उदाहरण इस लेख में देने का प्रयास किया गया है-
छत्तीसगढ़ के धरसिवा विकासखंड का संकुल लभांडी का प्राथमिक शाला के शिक्षक परषोत्तम बघेल की कक्षा 5 जहां बच्चों के साथ तीन अंकों की संख्या का दो अंकों की संख्या से गुणा पर शिक्षण चल रहा था। कक्षा में 35 बच्चे उपस्थित थे।
सबसे पहले शिक्षक ने सभी बच्चों से पूछा “ किस-किस को दो अंकों का एक अंक की संख्या से गुणा करना आता है?” तीन बच्चों को छोडकर सभी बच्चों ने हाथ ऊपर उठाया।
शिक्षक का अगला सवाल था “किस-किस को तीन अंकों की संख्या का दो अंकों की संख्या से गुणा करना आता है?” पुनः उन तीन बच्चों को छोड़कर सभी बच्चों ने हाथ ऊपर कर बताया कि हमें आता है। लेकिन कुछ बच्चों ने कहा “सर एक बार फिर से बता दीजिए।“
शिक्षक ने एक सवाल ब्लेकबोर्ड पर लिखा –
उपरोक्त सवाल को शिक्षक ने कक्षा में जिस प्रक्रिया से बच्चों के साथ कार्य किया उस प्रक्रिया में एक समावेशी कक्षा का आभास होता है जिस पर गौर करना इस लेख का उद्देश्य है-
- सबसे पहले शिक्षक ने एक निर्देश दिया- “मैं जिस बच्चे से पूछूंगा वही जवाब देगा। ठीक है ? इसे ध्यान रखना।“ सभी बच्चे एक स्वर में बोले – “ हाँ सर”
- एक बच्चे का नाम लेकर शिक्षक का पहला सवाल था- “ बताओ इस सवाल में क्या करना है?’ उस बच्चे ने जवाब दिया – “गुणा” उसी बच्चे से- “किसका गुणा किसके साथ करना है?” बच्चे ने पूरी संख्या ठीक-ठीक पढ़ते हुए सही जवाब दिया- “नौ सौ अंठावन को छब्बीस से गुणा करना है।“
- एक अन्य बच्चे- से “गुणा करने के लिए सबसे पहले क्या करना होगा?” बच्चे ने जवाब दिया “6 का पहाड़ा 8 बार पढ़ेंगे।“ “चलो पढ़ो” बच्चे ने पहाड़ा पढ़ा और बताया – “अड़तालीस”
- एक अन्य बच्चे से – “क्यों जी, अड़तालीस कैसे लिखते हैं? बच्चे ने कहा- “आठ और चार” शिक्षक ने उसे ब्लेकबोर्ड पर इस तरह लिखा – ‘84’ और पूछा “ऐसा?” बच्चे ने कहा- “जी” शिक्षक ने उस बच्चे से पुनः प्रश्न किया “और चौरासी कैसे लिखते हैं?” शिक्षक द्वारा किए गए इस सवाल का उद्देश्य शायद यह था कि बच्चा अपनी गलती स्वयं सुधार कर सही बता दे। शिक्षक ने पुनः इस संख्या को सही करने के उद्देश्य से बच्चे को इस तरह याद दिलाया- “याद करो, अड़तालीस चालीस वाली लाइन में आता है।“ अबकी बार उस बच्चे ने ठीक करते हुए कहा- “चार और आठ” शिक्षक ने इस संख्या को ब्लैकबोर्ड में लिखा- “48”
- अगला सवाल एक अन्य बच्चे से – “इस 48 में से कौन सी संख्या को सवाल के नीचे लिखना है और किसे हासिल में?” उस बच्चे ने कहा- “8 को सवाल के नीचे और 4 को हासिल में 5 के ऊपर।“ शिक्षक ने ब्लेकबोर्ड पर इस तरह लिखा –
- शिक्षक ने अगला सवाल एक अन्य बच्चे से किया- “ अब आगे क्या करेंगे?” बच्चे ने जवाब दिया- “6 का पहाड़ा 5 बार पढ़ेंगे” शिक्षक- तो पढ़ कर बताओ कितना होगा” बच्चे ने पहाड़ा पढ़ा और बताया- “30”
- शिक्षक एक अन्य बच्चे से कहा- “यहाँ आओ और बताओ तीस कैसे लिखते हैं” बच्चे ने सही लिखा इस तरह ’30’
- शिक्षक ने एक अन्य सवाल एक अन्य बच्चे से किया- “अब बताओ आगे क्या करना होगा।“ बच्चा-’30’ में हासिल के ‘4’ को जोड़ना होगा” शिक्षक- “जोड़ कर बताओ कितना होगा।“ बच्चे ने अपनी उंगली की मदद से जोड़ कर कहा- “चौतीस” शिक्षक ने ब्लेकबोर्ड पर ‘34’ लिखा और उसी बच्चे से- “यहाँ आकर बताओ ’34’ में से कौन सी संख्या को कहाँ – कहाँ लिखना है।“ बच्चा आया और इस तरह (4 को सवाल के नीचे तथा 3 को सैकड़ा के ऊपर) लिखा, इस तरह –
आगे भी इसी तरह गुणा के सवाल के प्रत्येक चरण के लिए कक्षा के अलग-अलग बच्चों के साथ अन्तरक्रिया करते हुए सवाल हल करने की प्रक्रिया में ज्यादा से ज्यादा बच्चों को जोड़ते चले गए।
जब सवाल को हल करने में चरण दर चरण सभी प्रक्रिया पूरी हो गई तब अंतिम चरण में ब्लेक बोर्ड पर सवाल कुछ इस तरह प्रदर्शित हुआ-
- उपरोक्त तरह से ब्लेकबोर्ड पर सवाल हल करने के बाद शिक्षक ने पुनः उस निर्देश को दोहराया जिसे सवाल हल करने की प्रक्रिया के प्रारम्भ में किया था- “जिसे पूछूंगा वही जवाब देगा।“
- शिक्षक एक अन्य बच्चे से- “पढ़कर बताओ कितना उत्तर आया?” उस बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया। तब शिक्षक ने इस तरह पढ़ने का एक तरीका बताते हुए कहा- “इकाई (8), दहाई (0), सैकड़ा (9), हजार (4) दस हजार (2) उत्तर में 4 और 2 हजार वाली जगह में है, जिसे एक साथ अर्थात इसे 24 हजार पढ़ते हैं।“
- पुनः एक अन्य सवाल एक अन्य बच्चे से किया गया- “8 के नीचे X का निशान क्यों बनाते हैं?” इस बार ऊपर दिए निर्देश को सभी बच्चे नज़रअंदाज़ करते हुए कई बच्चों ने एक साथ जवाब दिया- “क्योंकि दहाई की संख्या से गुणा करने पर दहाई की संख्या के नीचे से लिखना शुरू करते हैं। (उल्लेखनीय है कि इस पर कक्षा में कुछ दिन पहले बच्चों से इस पर चर्चा की गई थी, जो उन्हें याद था)।
(अभी तक हमने देखा शिक्षक ने इस पूरी प्रक्रिया में कक्षा के ज्यादा से ज्यादा बच्चों को कक्षा की प्रक्रिया में शामिल करने का पूरा प्रयास किया है। आगे की प्रक्रिया जो कि आकलन के लिए होता है, में हम देखेंगे कि कक्षा के शेष बच्चों को प्रक्रिया में कैसे शामिल करते हैं)।
- शिक्षक ब्लेकबोर्ड पर उपरोक्त स्तर का पाँच प्रश्न लिखते हैं और 5 बच्चों को इसे हल करने के लिए बुलाते हैं। इन 5 बच्चों में दो बच्चे इसे सही हल नहीं कर पाते। जिस पर शिक्षक पूरी कक्षा से मुखातिब होकर पुनः उन सवालों पर चर्चा करते हैं। इसी तरह के पुनः 5 प्रश्नो की शृंखला ब्लेकबोर्ड पर लिख कर 5 बच्चियों को ब्लेकबोर्ड के पास बुलाते हैं। बच्चियाँ हल करने में लग जाती हैं।
बहरहाल ऊपर दर्शाई गई पूरी प्रक्रिया में इस बात का खुलासा तो हो ही रहा है कि शिक्षक ने ज्यादा से ज्यादा बच्चों को प्रक्रिया में शामिल करने का प्रयास किया। लेकिन जो खास बात इस पूरी प्रक्रिया में हो रही थी, उससे इस कक्षा को समावेशी कक्षा की श्रेणी में अवश्य रखा जा सकता है-
- शिक्षक बच्चों से प्रश्न पुछते समय लिंग समानता का अवश्य ध्यान रखते थे। अर्थात बच्चे एवं बच्चियों दोनों को समान अवसर देते थे।
- नियमित एवं अनियमित उपस्थिती वाले दोनों तरह के बच्चों को अवसर देते थे। जैसे- जो बच्चे प्रारम्भ में हाथ नहीं उठाए थे उनसे भी शिक्षक सवाल करते थे / बोलने का मौका देते थे।
- बच्चों के सामाजिक पृष्ठभूमि का अवश्य ध्यान रखते थे, सभी तरह के पृष्ठभूमि वाले बच्चों को अवसर देते थे।
- समानता के साथ समता का भी ध्यान रखते थे अर्थात बच्चों से प्रश्न करते समय जो बच्चे ठीक-ठीक जवाब नहीं दे पाते थे, उनका चिंहांकन करते थे ताकि उन बच्चों के साथ अतिरिक्त प्रयास किया जा सके। (कक्षा में ऐसे बच्चे भी थे जो संख्या भी नहीं बता पाते थे)।
इस प्रकार हम देखें तो कक्षा की पूरी प्रक्रिया को शत प्रतिशत बाल केन्द्रित एवं Interactive प्रक्रिया निश्चित ही कहा जा सकता है क्योंकि इस बाल केन्द्रित प्रक्रिया में कक्षा में सभी बच्चों को चाहे वे लड़के-लड़कियां हों, नियमित-अनियमित बच्चे हों, सामने बैठने-पीछे बैठने वाले बच्चे हों, सभी सामाजिक पृष्ठभूमि के बच्चे हों, सभी को सीखने एवं कक्षा की प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर मिल रहा था। समावेशी शिक्षा पर अन्य लेख के लिए इस लिंक में जा सकते हैं- https://www.researchgate.net/publication/293337563_Inclusive_Education
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